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[[category: ग़ज़ल]]
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जो यहाँ पे आये थे सैर को, नहीं फिर वे लौटके घर गये
जो ये रट लगाते थे हर घड़ी, कि क़सम न टूटेगी प्यार की
वही सामने से अभी-अभी, बड़ी बेरुखी बेरुख़ी से गुज़र गये
न चमक है मुँह पे न कोई लय, नहीं अलविदा का भी होश है
यहाँ हर तरफ है धुआँ-धुआँ, रहें हम तो कैसे रहें यहाँ!
थीं हसीन जिनसे ये बस्तियांबस्तियाँ, वे गुलाब आज किधर गये?
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