भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
खिली गुलाब की दुनिया तो है सभी के लिये
मगर गुलाब है खिलता किसी-किसी के लिएलिये
न मौत के लिये आये न ज़िन्दगी के लिये
तड़पने आये हैं दुनिया में दो घड़ी के लिएलिये
अदाएं तेरी जो, ऐ ज़िन्दगी! सँभाल सके
कलेजा चाहिए पत्थर का आदमी के लिएलिये
ये हमने माना कि जीवन है एक अँधेरी रात
करेगा कौन उन्हें प्यार अब हमारी तरह!
न चाँद फिर कभी निकलेगा चाँदनी के लिए लिये
जहां भी होती है चर्चा तेरी रंगीनी की
हमारा नाम भी लेते हैं सादगी के लिये
<poem>
2,913
edits