भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
एक आँखों का हो सपना मगर आसान नहीं
यों तो राही हैं सभी एक ही मंजिल मंज़िल के, गुलाब!
तेरा इस भीड़ में खपना मगर आसान नहीं
<poem>