भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
1,373 bytes removed,
20:26, 6 जुलाई 2011
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>
चले भी आइये क्यारी में सौ गुलाब खिले
हमारे मन की अटारी में सौ गुलाब खिले
कभी तो आपकी हम पर रही दया की नज़र!
कभी तो प्यार की क्यारी में सौ गुलाब खिले!
कभी बहार के पाँवों की तो आहट न मिली
भले ही मन की खुमारी में सौ गुलाब खिले
खड़े हुए थे अँधेरे तो दोनों ओर मगर
किरन-किरन की सवारी में सौ गुलाब खिले
जहां था प्यार नज़रबंद आँसुओं से कभी
उसी चहारदीवारी में सौ गुलाब खिले
जतन से ओढ़ के चादर तो ज्यों-की-त्यों धर दी
मगर कहीं थे किनारी में सौ गुलाब खिले
<poem>