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वो गुलाब और ही था मगर, जिसे तुम खिलाके चले गये
उसे अपने मन के ग़रूर से, न सुना किसी ने किसीने तो क्या हुआ!वो ग़ज़ल किसी से किसीसे भी कम न थी, जिसे हम सुनाके चले गये
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