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मिल गयी क्या तेरी आँखों में झलक प्यार की थी!
आख़िरी वक्त वक़्त तड़प और ही बीमार की थी
यों चलाई थी छुरी उसने गले पर हँसकर
दोष लहरों का नहीं था न किनारों का क़सूर
दिल की पतवार तो खुद ख़ुद ही बिना पतवार की थी
भेद तेरा उसे कोयल न कह गयी हो, गुलाब!
आज बदली हुई चितवन भी कुछ बहार की थी
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