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यह मानव-विकास की धारा आगे बढ़ती जायेगी
लाँघ न पाया जिसको कोई एक प्रेम की रेखा है
पंख कुतर कर कुतरकर रख दे मन के, ऐसा आयुध देखा है!
चले प्रेम करने जो रिपु से, जग की व्यथा बटोर चले
शासन कैसे चले जहाँ पर बल का नहीं प्रमाण चले
स्मट्स हाथ मल-मलकर 'कहता कैसे लडूँ लड़ूँ लड़ाई मैंयह!
राजनीति, रणनीति कहीं भी मुझे न गयी सिखाई यह
नहीं समझ में आता है रिपु है या मेरा भाई यह
कारा उसको मुक्ति, मुक्ति मुझको कारा-सी दुःखदायी दुखदायी यह'
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