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भूल ही भूल बही तुझसे, प्रभु-भूल के, माया से प्रीत करी है
कर्म को भूल के, शर्म को भूल के,धर्म की बात हृदय ना धरी है
चाहत है परिवार सम्बन्ध को, बन्धन की मन बान परी है,
भूल गयो सगरो सद्ज्ञान, अज्ञान भयो, न भज्यो तू हरि है
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