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माता यशोदा अपने पुत्र श्यामसुन्दरको प्रेमपूर्वक गोदमें गोद में लिये हैं और उनके वेदमय(जिससे वेदोंकी वेदों की उत्पत्ति हुई उस) कमलमुखको कमलमुख को (दोनों हाथोंसेहाथों से) छू रही हैं वहश्रीमुख वह श्री मुख अत्यन्त सुन्दर है, अरुणाभ है और अत्यन्त कोमल है; स्नेहसे स्नेह से (उसे छूकर छू कर माता)आनन्दितहो आनन्दित हो रही हैं, मानो उनकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो गयीं । उनकी पीठके पीठ के सहारे सुन्दर बलरामजी बलराम जी उझके हैं, बलराम और श्यामसुन्दर परस्पर एक-दूसरेको दूसरे को देख रहे हैं ।दोनों । दोनों पुत्र एक-दूसरेको दूसरे को झुककर बार-बार देख रहे हैं । (यह शोभा देखकर) मैया आनन्दमग्न आनन्द मग्न होकर एक प्रहरसे प्रहर से निर्निमेष हो रही है । (पुत्रोंकेपुत्रों के) स्वरूपको स्वरूप को देखकर उसे अपनी कुछ सुधि नहीं रह गयी, उसी समय (दोनोंने दोनों ने मिलकर) माताके माता के गले की माला तोड़ दी ।सूरदासजी ।सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामीकी स्वामी की शिशु-लीलाका लीला का आनन्द (जिन्हें देखना हो, वे) श्रीनन्दजीके श्रीनन्द जी के धाम में देख आवें ।