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सूरदास मन मुदित जसोदा, भाग बड़े, कर्मनि की मोटी ॥<br><br>
भावार्थ :--दोनों भाई मैयासे मैया से माँग रहे हैं- `अरी मैया! माखन-रोटी दे।' माता पुत्रों की प्यारीबातें प्यारी बातें सुन रही है और (उनके मचलनेका मचलने का आनन्द लेनेके लेने के लिये) झूठ-मूठ घरके काममें घर के काम में उलझी है । (इससे रूठकर) बलरामजी बलराम जी ने नाकका नाक का मोती पकड़ा और कुँवर कन्हाईने कन्हाई ने दोनों हाथोंमें दृढ़तासे हाथों में दृढ़ता से (माताकीमाता की) चोटी (वेणी) पकड़ी, मानो हंस और मयूर अपना-अपना आहार(मोती और सर्प) लिये हों किंतु कविकेद्वारा कवि के द्वारा वर्णित यह उपमा भी कुछ छोटी ही है (उस शोभाके शोभा के अनुरूप नहीं)। यह शोभा देखकर श्रीनन्दजीका श्रीनन्द जी का चित्त आनन्दमग्न हो रहा है; अत्यन्त प्रसन्नतासे प्रसन्नता से हँसते हुए वे लोट-पोट हो रहे हैं । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि यशोदाजी यशोदा जी भी हृदयमें हृदय में प्रमुदित हो रही हैं, वे बड़भागिनी हैं, उनके पुण्य महान हैं (जो यह आनन्द उन्हें मिल रहा है)।