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बातनिहीं सुत लाइ लियौ / सूरदास

17 bytes added, 16:58, 28 सितम्बर 2007
यह सुख निरखत सूरज प्रभु कौ, धन्य-धन्य पल सुफल जियौ ॥<br><br>
भावार्थ :-- यशोदाने यशोदा ने अपने पुत्रको बातेंमें पुत्र को बातें में लगा लिया और तबतक तब तक दही मथकर मक्खनश्यामके मक्खन श्याम के हाथपर रख दिया । मोहन (थोड़ा-थोड़ा माखन) ले-लेकर होठसे छुलाकरखा होठ से छुला कर खा रहे हैं, यह देखकर माताका माता का हृदय प्रफुल्लित हो गया है, स्वयं ही खाते हैं और स्वयं ही प्रशंसा करते हैं, मक्खन-रोटी इन्हें बहुत प्रिय है । जो प्रभु शिव और सनकादि ऋषियोंको ऋषियों को भी दुर्लभ हैं, उन्हें पुत्र बनाकर यशोदाजी यशोदा जी और नन्दबाबा उनसे(वात्सल्य) प्रेम कर रहे हैं । अपने स्वामीका स्वामी का यह आनन्द देखकर सूरदास इस क्षणको क्षण को परम धन्य मानता है, जीवनका जीवन का यही सुफल है (कि श्यामकी श्याम की बाल-लीलाके लीला के दर्शन हों)।