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मजाज़ लखनवी / परिचय

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|रचनाकार=मजाज़ लखनवी
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'''असरारुल हक़ "मजाज़"'''
1935 में वे आल इण्डिया रेडियो की पत्रिका ‘आवाज’ के सहायक संपादक हो कर मजाज़ दिल्ली आ गये। दिल्ली में नाकाम इश्क ने उन्हें ऐसे दर्द दिये कि जो मजाज़ को ताउम्र सालते रहे। यह पत्रिका बमुश्किल एक साल ही चल सकी, सो वे वापस लखनऊ आ गए। इश्क में नाकामी से मजाज़ ने शराब पीना शुरू कर दिया। शराब की लत इस कदर बढ़ी कि लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि मजाज़ शराब को नहीं, शराब मजाज़ को पी रही है। दिल्ली से विदा होते वक्त उन्होंने कहा-
<poem>
रूख्सत ए दिल्ली! तेरी महफिल से अब जाता हूं मैं
 
नौहागर जाता हूं मैं नाला-ब-लब जाता हूं मैं
</poem>
==निधन==
: 5 दिसम्बर 1955
लखनऊ में 1939 में सिब्ते हसन ,सरदार जाफरी और मजाज़ ने मिलकर ’नया अदब’ का सम्पादन किया जो आर्थिक कठिनाईयों की वजह से ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। कुछ दिनों बाद में वे फिर दिल्ली आ गये और यहां उन्होंने ‘हार्डिंग लाइब्रेरी’ में असिस्टेन्ट लाइब्रेरियन के पद पर काम किया, लेकिन दिल्ली उन्हें रास न आई। दिल्ली से निराश होकर मजाज़ बंबई चले गए,लेकिन उन्हें बंबई भी रास न आया। बंबई की सडकों पर आवारामिजाजी करते हुये मजाज़ ने अपने दिल की बात अपनी सर्वाधिक लोकप्रिय नज्म ‘आवारा’ के मार्फत कुछ यूं कही-
<poem>
शहर की रात और मैं नाशाद ओ नाकारा फिरूं
 
जगमगाती,जागती सडकों पे आवारा फिरूं
 
गैर की बस्ती है,कब तक दर-ब-दर मारा फिरूं
 
ऐ गमे दिल क्या करूं, ऐ वहशते-दिल,क्या करूं।
 </poem>
बम्बई से कुछ समय बाद मजाज लखनऊ वापस आ गये। लखनऊ उन्हें बेहद पसन्द था। लखनऊ के बारे में उनकी यह नज्म उनके लगाव को खूबसूरती से प्रकट करती है।
 <poem>
फिरदौसे हुस्नो इश्क है दामाने लखनऊ
 
आंखों में बस रहे हैं गजालाने लखनऊ
 
एक जौबहारे नाज को ताके है फिर निगाह
 
वह नौबहारे नाज कि है जाने लखनऊ।
</poem>
लखनऊ आकर वे बहुत ज्यादा शराब पीने लगे, जिससे उनकी हालात लगातार खराब होती गई। उनकी पीड़ा ,दर्द घुटन अकेलापन ऐसा था कि वे ज्यादातर खामोश रहते थे। शराब की लत उन्हें लग चुकी थी,जो उनके लिये जानलेवा साबित हुयी। 1940 से पहले नर्वस ब्रेकडाउन से लेकर 1952 के तीसरे ब्रेकडाउन तक आते आते वे शारीरिक रूप से काफी अक्षम हो चुके थे। 1952 के तीसरे ब्रेकडाउन के बाद वे जैसे-तैसे स्वस्थ हो ही रहे थे कि उनकी बहन साफिया का देहान्त हो गया यह सदमा उन्हें काफी भारी पडा़। 5 दिसम्बर 1955 को मजाज ने आखिरी सांस ली। महज 44 साल का यह कवि अपनी उम्र को चुनौती देते हुए बहुत बडी रचनाएं कह के दुनिया से विदा हुआ।
==कृतियाँ==
#[[आहंग / मजाज़ लखनवी]]
#[[नर्म अहसासों के साथ क्रान्ति की आवाज / मजाज़ लखनवी]]
#[[बोल धरती बोल/ मजाज़ लखनवी]]
#[[नजरे-दिल / मजाज़ लखनवी]]
#[[ख्वाबे-सहर/ मजाज़ लखनवी]]
#[[वतन आशोब / मजाज़ लखनवी]]
#[[बोल! अरी ओ धरती बोल / मजाज़ लखनवी]]
आदि उनकी यादगार नज़्में हैं। [[मजाज़ लखनवी]] की कविता में भावनाओं की बाढ़ है, इंसानी जज्बातों का हर रंग उसमें शामिल है चाहे वह दर्द हो या ख़ुशी , जुनूँ हो या इश्क । प्रगतिशीलता का जामा पहनकर उन्होंने कविता का नया दयार बख्शा ।
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