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कबीर दोहावली / पृष्ठ १

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सार-सार को गहि रहे, थोथ देइ उड़ाय ॥ 58 ॥ <BR/><BR/>
लागी लगन छूटे नहिंनाहिं, जीभ चोंच जरि जाय । <BR/>
मीठा कहा अंगार में, जाहि चकोर चबाय ॥ 59 ॥ <BR/><BR/>
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