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|रचनाकार=श्रीकृष्ण सरल
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मैं अमर शहीदों का चारण
उनके गुण गाया करता हूँ
जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है,
मैं उसे चुकाया करता हूँ।
मैं अमर यह सच है, याद शहीदों का चारण<br>की हम लोगों ने दफनाई हैउनके गुण गाया करता हूँ<br>यह सच है, उनकी लाशों पर चलकर आज़ादी आई है,जो कर्ज राष्ट्र ने खाया यह सच है,<br>हिन्दुस्तान आज जिन्दा उनकी कुर्वानी सेमैं उसे चुकाया करता हूँ।<br><br>यह सच अपना मस्तक ऊँचा उनकी बलिदान कहानी से।
यह सच हैवे अगर न होते तो भारत मुर्दों का देश कहा जाता,जीवन ऍसा बोझा होता जो हमसे नहीं सहा जाता, याद शहीदों की हम लोगों ने दफनाई है<br>यह सच हैदाग गुलामी के उनने लोहू सो धोए हैं, उनकी लाशों पर चलकर आज़ादी आई हैहम लोग बीज बोते,<br>उनने धरती में मस्तक बोए हैं।यह सच हैइस पीढ़ी में, हिन्दुस्तान आज जिन्दा उनकी कुर्वानी से<br>उस पीढ़ी केयह सच अपना मस्तक ऊँचा उनकी बलिदान कहानी से।<br><br>मैं भाव जगाया करता हूँ।मैं अमर शहीदों का चारण उनके यश गाया करता हूँ।
वे अगर न होते तो भारत मुर्दों का देश कहा जातायह सच उनके जीवन में भी रंगीन बहारें आई थीं,<br>जीवन ऍसा बोझा होता जो हमसे नहीं सहा जाताकी स्वप्निल निधियाँ भी उनने जीवन में पाई थीं,<br>यह सच है दाग गुलामी पर, माँ के आँसू लख उनने लोहू सो धोए हैंसब सरस फुहारें लौटा दीं,<br>हम लोग बीज बोते, उनने धरती में मस्तक बोए हैं।<br>इस पीढ़ी में, उस पीढ़ी काँटों के<br>मैं भाव जगाया करता हूँ।<br>मैं अमर शहीदों पथ का चारण <br>उनके यश गाया करता हूँ।<br><br>वरण किया, रंगीन बहारें लौटा दीं।
यह सच उनके जीवन में भी रंगीन बहारें आई थीं,<br>जीवन की स्वप्निल निधियाँ भी उनने जीवन में पाई थींधरती की सेवा के वादे न किए लम्बे—चौड़े,<br>पर, माँ के आँसू लख उनने सब सरस फुहारें लौटा दींअर्चन हित फूल नहीं, वे निज मस्तक लेकर दौड़े,<br>काँटों के पथ भारत का वरण कियाखून नहीं पतला, रंगीन बहारें लौटा दीं।<br><br>वे खून बहा कर दिखा गए,जग के इतिहासों में अपनी गौरव—गाथाएँ लिखा गए।उन गाथाओं से सर्दखून कोमैं गरमाया करता हूँ।मैं अमर शहीदों का चरणउनके यश गाया करता हूँ।
उनने धरती है अमर शहीदों की सेवा के वादे न किए लम्बे—चौड़ेपूजा,<br>हर एक राष्ट्र की परंपराउनसे है माँ के अर्चन हित फूल नहींकी कोख धन्य, वे निज मस्तक लेकर दौड़ेउनको पाकर है धन्य धरा,<br>भारत का खून नहीं पतलागिरता है उनका रक्त जहाँ, वे खून बहा कर दिखा गएठौर तीर्थ कहलाते हैं,<br>जग के इतिहासों में अपनी गौरव—गाथाएँ लिखा गए।<br>उन गाथाओं से सर्दखून को<br>मैं गरमाया करता हूँ।<br>मैं अमर शहीदों का चरण<br>उनके यश गाया करता हूँ।<br><br>वे रक्त—बीज, अपने जैसों की नई फसल दे जाते हैं।
है अमर इसलिए राष्ट्र—कर्त्तव्य, शहीदों की पूजाका समुचित सम्मान करे, हर एक राष्ट्र की परंपरा<br>उनसे है माँ की कोख धन्यमस्तक देने वाले लोगों पर वह युग—युग अभिमान करे, उनको पाकर है धन्य धरा,<br>गिरता होता है उनका रक्त ऍसा नहीं जहाँ, वे ठौर तीर्थ कहलाते हैंवह राष्ट्र नहीं टिक पाता है,<br>वे रक्त—बीजआजादी खण्डित हो जाती, अपने जैसों की नई फसल दे जाते हैं।<br><br>सम्मान सभी बिक जाता है।यह धर्म—कर्म यह मर्मसभी को मैं समझाया करता हूँ।मैं अमर शहीदों का चरणउनके यश गाया करता हूँ।
इसलिए राष्ट्र—कर्त्तव्यपूजे न शहीद गए तो फिर, शहीदों का समुचित सम्मान करे,<br>यह पंथ कौन अपनाएगा?मस्तक देने वाले लोगों पर वह युग—युग अभिमान करे,<br>तोपों के मुँह से कौन अकड़ अपनी छातियाँ अड़ाएगा?होता है ऍसा नहीं जहाँचूमेगा फन्दे कौन, वह राष्ट्र नहीं टिक पाता है,<br>गोलियाँ कौन वक्ष पर खाएगा?आजादी खण्डित हो जाती, सम्मान सभी बिक जाता है।<br>यह धर्म—कर्म यह मर्म<br>सभी को मैं समझाया करता हूँ।<br>मैं अमर शहीदों का चरण<br>उनके यश गाया करता हूँ।<br><br>अपने हाथों अपने मस्तक फिर आगे कौन बढ़ाएगा?
पूजे न शहीद गए तो फिर, यह पंथ कौन अपनाएगा?<br>तोपों के मुँह से कौन अकड़ अपनी छातियाँ अड़ाएगा?<br>चूमेगा फन्दे कौन, गोलियाँ कौन वक्ष पर खाएगा?<br>अपने हाथों अपने मस्तक फिर आगे कौन बढ़ाएगा?<br><br> पूजे न शहीद गए तो फिर आजादी कौन बचाएगा?<br>फिर कौन मौत की छाया में जीवन के रास रचाएगा?<br>पूजे न शहीद गए तो फिर यह बीज कहाँ से आएगा?<br>धरती को माँ कह कर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा?<br>मैं चौराहे—चौराहे पर<br>ये प्रश्न उठाया करता हूँ।<br>मैं अमर शहीदों का चारण<br>उनके यश गाया करता हूँ।<br>जो कर्ज ने खाया है, मैं चुकाया करता हूँ।<br><br/poem>
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