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बहुत जरूरी है पहुँचना
सामान बाँधते बमुश्किल कहते पिता
बेटी जिद करती
एक दिन और रुक जाओ न पापा
एक दिन
बहुत जरूरी है पहुँचना<br>पिता के वजूद कोजैसे आसमान में चाटतीकोई सूखी खुरदरी जुबानसामान बाँधते बमुश्किल बाहर हँसते हुए कहते पिता<br>कितने दिन तो हुएबेटी जिद करती<br>सोचते कब तक चलेगा यह सब कुछसदियों से बेटियाँ रोकती होंगी पिता कोएक दिन और रुक जाओ न पापा<br>और एक दिन<br><br>डूब जाता होगा पिता का जहाज
पिता के वजूद को<br>जैसे आसमान वापस लौटते में चाटती<br>कोई सूखी खुरदरी जुबान<br>बादल बेटी के कहे के घुमड़तेबाहर हँसते हुए कहते कितने दिन तो हुए<br>सोचते कब तक चलेगा यह सब कुछ<br>सदियों होती बारीश आँखो से बेटियाँ रोकती होंगी पिता को<br>एक दिन और<br>टकराती नमीऔर एक दिन डूब भीतर कंठ रूँध जाता होगा पिता थके कबूतर का जहाज<br><br>
वापस लौटते में<br>बादल बेटी के कहे के घुमड़ते<br>होती बारीश आँखो से टकराती नमी<br>भीतर कंठ रूँध जाता थके कबूतर का<br><br> सोचता पिता सर्दी और नम हवा से बचते<br>दुनिया में सबसे कठिन है शायद<br>
बेटी के घर लौटना।
</poem>
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