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आतंकवाद / जयप्रकाश कर्दम

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lalit{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=जयप्रकाश कर्दम|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>मिथ्या है यह जगतसत्य है केवल ब्रह्मईश्वर, अल्लाह या परम-आत्मउसने बनायी है यह दुनियांवही है सर्जक, पालक, संहारकइस दुनियां काप्रत्येक जीव में है उसी का अंशउससे प्रथक नहीं है किसी का अस्तित्वसब हैं उसके हाथ के खिलौनेया कठपुतलियांनचाता है अपने इशारों परकराता है कर्म जैसा वह चाहेक्या है इंसान का वजूद उसके आगेकही करता है इंसान और उतना हीजो चाहता या करवाता हैअल्लाह या भगवानइंसान नहीं फोड़ता बमनहीं करता हत्याएं अपनी इच्छा सेनिमित्त मात्र है इंसानईश्वर या अल्लाह ही यह सबकरता-करवाता हैवही इंसान को इंसान से लड़ाता हैएक दूसरे का दुश्मन बनाता हैवह एक है या अनेकवही है सबसे बड़ा मास्टर माइंडउसी की कारस्तानियां हैं लाशों के ढेरआतंक का सैलाबमासूमों के खून से रंगे हैं उसके हाथदुनियां से हिंसा और आतंक मिटाना हैइसे रहने लायक बनाना है तोहिंसा और आतंक की जड़ों को मिटाओईश्वर को कैद में डालोअल्लाह को फांसी पर लटकाओ।</poem>