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|संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>उड़ गए बालो-पर उड़ानों में<br>
सर पटकते हैं आशियानों में|
 जल उठेंगे चराग़ पल भर में<br>
शिद्दतें चाहिये तरानों में|
नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते<br>
घर बदलने लगे दुकानों में|
 धर्म के नाम पर हुआ पाखंड<br>
लोग जीते हैं किन गुमानों में|
 कट गए बालो-पर, मगर हमने<br>
नक्श छोड़े हैं आसमानों में|
 वलवले सो गए जवानी के<br>
जोश बाक़ी नहीं जवानों में|
 बढ़ गए स्वार्थ इस क़दर ‘देवी’<br>
एक घर बंट गया घरानों में|
</poem>
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