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भारत की आरती
 
देश-देश की स्वतंत्रता देवी
 
आज अमित प्रेम से उतारती ।
 
निकटपूर्व, पूर्व, पूर्व-दक्षिण में
 
जन-गण-मन इस अपूर्व शुभ क्षण में
 
गाते हों घर में हों या रण में
 भारत की लोकतंत्र भारती ।भारती।
गर्व आज करता है एशिया
 
अरब, चीन, मिस्र, हिंद-एशिया
 
उत्तर की लोक संघ शक्तियां
 युग-युग की आशाएं वारतीं ।वारतीं।
साम्राज्य पूंजी का क्षत होवे
 
ऊंच-नीच का विधान नत होवे
 
साधिकार जनता उन्नत होवे
 जो समाजवाद जय पुकारती ।पुकारती।
जन का विश्वास ही हिमालय है
 
भारत का जन-मन ही गंगा है
 
हिन्द महासागर लोकाशय है
 यही शक्ति सत्य को उभारती ।उभारती।
यह किसान कमकर की भूमि है
 
पावन बलिदानों की भूमि है
 
भव के अरमानों की भूमि है
 मानव इतिहास को संवारती ।संवारती।</poem>
(15 अगस्त 1947 को विरचित,'कुछ कवितायें'नामक कविता-संग्रह से )
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