भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
भोगासक्ति-विनाशक, भव-बाधा-हर, दायक-प्रेम अनूप॥
प्रेम कृष्ण का, प्रेम कृष्ण में, स्वयं कृष्ण ही निर्मल प्रेम।
ह में हमें मिले, बस, एकमात्र वह, वही हमारा योग-क्षेम॥
कृष्ण-नाम-गुण गा‌ओ अविरत प्रेमसहित नाचो तज लाज।
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,357
edits