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Kavita Kosh से
मुझे मालूम है इतना के दामें-ज़िन्दगी पोशीदा है इन चार क़दमों में
बहुत सी राहतें मुज्मिर है इन दुश्वार रस्तों में
मेरे बारे न कुछ सोचो…सोचो तुम अपनी बात बतलाओकहो तो चलते रहते हैंकहो तो लौट जाते हैं
कहो तो लौट जातें हैं...
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