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ज़बाँ दातों तलक है, ज़हर प्यालों तक नहीं आई
अभी तो मुश्क-ए-कस्तूरी<ref>कस्तूरी: नर हिरन की खुशबू </ref> ग़ज़ालों<ref> हिरणी</ref> तलक नहीं आई
अभी रुदाद-बे-उन्वाँ<ref> बिना शीर्षक की कहानी </ref> हमारे दर्मियाँ है दुनियावालों तक नहीं आई
कहो तो लौट जाते हैं…
अभी नज़दीक है घर, और मंजिल दूर है अपनी,
मेरे बारे न कुछ सोचो…
मुझे तय करना आता है रसन का, दार का रस्ता…
ये असाबोंआसिबों<ref> बेचैनी</ref> भरा रस्ता ये अंधी घार<ref>खोह </ref> का रस्ता
तुम्हारा नर्म-ओ-नाज़ुक हाथ हो अगर मेरे हाथों में,
तो मैं समझूँ के जैसे दो जहाँ है मेरी मुट्ठी में
तुम्हारा कुर्ब<ref>नजदीकी, साथ </ref> हो तो मुश्किलें काफ़ूर<ref> ख़त्म होना</ref> हो जाएँ
ये अन्धे और काले रास्ते पुर-नूर<ref>रोशनी से भरे हुए </ref> हो जाएँ
तुम्हारे गेसुओं के की छाँव मिल जाए तो
सूरज से उलझना बात ही क्या है
उठा लो अपना साया तो मेरी औक़ात ही क्या है
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