भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
यद्यपि पालन में रही चूक
हे मर्म-स्पर्शिनी आत्मीये।आत्मीये!
ज्यों बातचीत के शब्द-शोर में एक वाक्य
अनबोला-सा।सा!
मेरे जीवन की तुम्ही धर्म
यद्यपि पालन में चूक रही)
नाराज नाराज़ न हो सम्पन्न करो
यह अग्नि-विधायक प्राण-कर्म
हे मर्म-स्पर्शिनी सहचारिणि।सहचारिणि!
मैं हूँ विनम्र-अन्तर नत-मुख
ज्यों लक्ष्य फूल -पत्तों वाली वृक्ष की शाख
आज भी तुम्हारे वातायान में रही झाँक
सुख फैली मीठी छायाओं के सौ सुख।सुख!
यद्यपि पालन में रही चूक
हे मर्म-स्पर्शिनी आत्मीये।आत्मीये!
सच है कि तुम्हारे छोह भरी
वक्ष पर रहा लौह-कवच
बाहर के ह्रास मनोमय लोभों लाभों से
हिय रहा अनाहत स्पन्दन सच,
Anonymous user