भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ज़मीं, फिर दर्द का ये सायबाँ <ref>छप्पर</ref> कोई नहीं देगा।तुझे ऐसा कुशादाँ <ref>विस्तृत</ref> आसमाँ कोई नहीं देगा।
अभी ज़िन्दा हैं, हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे
जलेंगे चुपके-चुपके सब, धुआँ कोई नहीं देगा।
</poem>
<ref></ref>
{{KKMeaning}}
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,345
edits