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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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जे हथ बसंत के लावेवाला उहे झेलऽ हथ दंस।दंसहमहुँ नितरइतूँ हल जो मिल जात हल एक्को अंस।।अंसदेह पर फट्टल कपड़ा हे, गोड़ में फटल बिआय।बिआयजेकरा दरद सुनाबऽ ही हम सुनके हे मुसकाय।मुसकायकउआ मोती चून रहल दाना चुगऽ हे हंस।। हंसहमहुँ ....परकिरती हमरा मारऽ हे, अधिकारी झुट्ठो झारऽ हे।हेमंतरी-विधायक हमरा सबके बार-बार दुत्कारऽ हे।हेजेकरा तर कृष्ण समझके जाहूँ उहे बनऽ हे कंस।। कंसहमहुँ ....हमरा लेहे सुक्खल रोटी ऊ खा हथ भुँज्जल काजू।काजूहमर बोट से राजा हे ऊ आझो हम ही उहे राजू।।राजूहम काशी के कलुआ डोम ऊ मालिक रघुवंश।। रघुवंश हमहुँ ....देखेके हो राम-राज त, चलऽ विधायक-निवास में।मेंबन ठन छुपल हे तस्कर, गुंडा खादी के लीवास में।मेंउहे राम के हमहुँ पुजूँ तइयो बढ़े न संस।। संस हमहुँ ....उनखा लेहे रोज दिवाली, ईद आउ बकरीद।बकरीदबेटा हो तो ऐसन होय जे देश ले होवे शहीद।शहीदपूत कपूत से अच्छा रहे ले चाहम हम निरवंश।। निरवंशहमहुँ ....
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