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जब कहीं किसी पराए देश में काल-कोठरी में
दम तोड़ता है कोई वीर या मारा जाता है कहीम कहीं कोई
दम तोड़ता है मेरा हृदय, जैसे चट्टान पर मछली
दम तोड़ती है मेरी कविता, जैसे उड़ान के बीच बिन्धा पाखी।
और कभी भी नहीं देख पाऊँगा तुम्हें
ओ भोर ! तुम आए अन्ततः, जैसे आया हो पक्षी ऋतुराज का
जैसे ही तुम आए घर नहा गया उजाले से
और खिड़की पर लहक उठी फलों से लदी शाख
कितना लुभावना है तुम्हारा मुखड़ा, चहुँओर हर्ष
चहचहाती हैं चिड़ियाँ तुम्हारे नैसर्गिक गीत
फिर से आसमान आसमान-सा, धरती -सी,न कहीं कोई हौवा, न कहीं कोई बिजूका वाह, जीवित हूँ मैं और हर्षित हैं मेरे बच्चेफिर से पहली-सी ताज़ा है घासचारागाहों में हैं मधुमक्खियों के झुण्ड के झुण्डधवल वस्त्रों में सजे-बिजे खड़े हैं पहाड़ पेड़ यार-दोस्तों से घिरे खड़े हैं मकान,सबकुछ व्यवस्थित है, लयबद्ध, नियमानुसारघर में — सबकुछ है ठौर-ठिकानेवाटिका में इठला रही सब्ज़ियों की कतार तुम, ओ रक्त-हृदय पाखी ! सहजता से आते होपार कर हरे-भरे चिनारों की कताररात पूँछ फटकारती है दूर तक सुनहरीऔर चीज़ों को लौटाती है ऐन्द्रिक अनुभूति तुम आए हो तो लौट आई, जग उठी आकाँक्षाशब्द हुए सम्पृक्त अर्थों से,फिर थाम ली मैंने सीधे हाथ में लेखनीनया नवल हो उठा सबकुछ आलोकित विश्व में मेरे गीत हैं, जैसे उड़ान पर निकले हर्षोन्मत्त पाखीकविता है मेरी उमँगों से लबरेज़ नीलवर्णी चिदइया-सीउमड़ती हैं नई पँक्तियाँ रुनझुन-रुनझुन करती हैं यशोगाननभ का मेघ का, पृथ्वी का गेहूँ की बाली का । एकाकी पनचक्की, शिलाखण्ड और उकाबपर्व
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : [[सुधीर सक्सेना]]'''
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