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थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी,
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी
हाय क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी।कढ़ी।
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में,
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