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घनश्याम कहाँ जाकर बरसे, हर घाट गगरिया प्यासी है
जंजीर ज़ंजीर कभी तड़का-तड़का, तकदीर तक़दीर जगाई थी हमने
हर बार बदलते मौसम पर, उम्मीद लगाई थी हमने
जंजीर कटी, तकदीर तक़दीर खुली, पर अभी नगरिया प्यासी है
घनश्याम कहाँ जाकर बरसे, हर घाट गगरिया प्यासी है
यह पीर समझने को तुम भी, घनश्याम कभी प्यासे तरसो
या तो कहीं भी ना बरसो, बरसो तो, चालीस करोड़ पर बरसो
क्या मौसम है जल छलक रहा, पर नई उमरिया प्यासी है
घनश्याम कहाँ जाकर बरसे, हर घाट गगरिया प्यासी है
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