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|रचनाकार =ख़्वाजा हैदर अली 'आतिश'|अनुवादक=|संग्रह=
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[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}{{KKVID|v=oO2YAQh7PZQ}}<poem>सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या<br>केहती है तुझको खल्क़-ए-खुदा ग़ाएबाना क्या <br><br>
ज़ीना सबा का ढूँढती है अपनी मुश्त-ए-ख़ाक<br>बाम-ए-बलन्द यार का है आस्ताना क्या<br><br>
ज़ेरे ज़मीं से आता है गुल हर सू ज़र-ए-बकफ़<br>क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया खज़ाना क्या <br><br>
चारों तरफ़ से सूरत-ए-जानाँ हो जलवागर <br>दिल साफ़ हो तेरा तो है आईना खाना क्या<br><br>
तिब्ल-ओ-अलम न पास है अपने न मुल्क-ओ-माल <br>हम से खिलाफ़ हो के करेगा ज़माना क्या <br><br>
आती है किस तरह मेरी क़ब्ज़-ए-रूह को <br>देखूँ तो मौत ढूँढ रही है बहाना क्या <br><br>
तिरछी निगाह से ताइर-ए-दिल हो चुका शिकार <br>जब तीर कज पड़ेगा उड़ेगा निशाना क्या?<br><br>
बेताब है कमाल हमारा दिल-ए-अज़ीम <br>महमाँ साराय-ए-जिस्म का होगा रवाना क्या<br><br>
यूँ मुद्दई हसद से न दे दाद तू न दे <br>
आतिश ग़ज़ल ये तूने कही आशिक़ाना क्या?
</poem>
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