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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>सितारों से उलझता जा रहा हूँशब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा रहा हूँ
सितारों से उलझता जा तेरे ग़म को भी कुछ बहला रहा हूँ <br>शब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा जहाँ को भी समझा रहा हूँ <br><br>
तेरे ग़म को भी कुछ बहला रहा हूँ <br>यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही हैजहाँ को भी समझा गुमाँ ये है कि धोखे खा रहा हूँ <br><br>
यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही है <br>अगर मुमकिन हो ले ले अपनी आहटगुमाँ ये है कि धोखे खा ख़बर दो हुस्न को मैं आ रहा हूँ <br><br>
अगर मुमकिन हो ले ले अपनी आहट <br>ख़बर दो हदें हुस्न को मैं आ -ओ-इश्क़ की मिलाकरक़यामत पर क़यामत ढा रहा हूँ <br><br>
हदें हुस्नख़बर है तुझको ऐ ज़ब्त--इश्क़ की मिलाकर <br>मुहब्बतक़यामत पर क़यामत ढा तेरे हाथों में लुटाता जा रहा हूँ <br><br>
ख़बर है तुझको ऐ ज़ब्त-ए-मुहब्बत <br>असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप कातेरे हाथों में लुटाता तुझे कायल भी कराता जा रहा हूँ <br><br>
असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप भरम तेरे सितम का<br>खुल चुका हैतुझे कायल भी कराता जा मैं तुझसे आज क्यों शर्मा रहा हूँ <br><br>
भरम तेरे सितम का खुल चुका पहलू में क्यों होता है<br>महसूसमैं कि तुझसे आज क्यों शर्मा दूर होता जा रहा हूँ <br><br>
तेरे पहलू में क्यों होता है महसूस<br>जो उलझी थी कभी आदम के हाथोंकि तुझसे दूर होता जा वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ <br><br>
जो उलझी थी कभी आदम के हाथों<br>मुहब्बत अब मुहब्बत हो चली हैवो गुत्थी आज तक सुलझा तुझे कुछ भूलता-सा जा रहा हूँ <br><br>
मुहब्बत अब मुहब्बत हो चली है<br>तुझे कुछ भूलता-सा जा रहा हूँ <br><br> ये सन्नाटा है मेरे पाँव की चाप<br>"फ़िराक़" अपनी कुछ आहट पा रहा हूँ <br><br/poem>
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