भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूँ ही कभी लब खोले हैं<br>पहले "फ़िराक़" को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं<br>
दिन में हम को देखने वालो अपने-अपने हैं औक़ाब<br>जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं<br>
फ़ितरत मेरी इश्क़-ओ-मोहब्बत क़िस्मत मेरी तन्हाई<br>कहने की नौबत ही न आई हम भी कसू के हो ले हैं<br>
बाग़ में वो ख़्वाब-आवर आलम मौज-ए-सबा के इशारों पर<br>डाली डाली नौरस पत्ते सहस सहज जब डोले हैं<br>
उफ़ वो लबों पर मौज-ए-तबस्सुम जैसे करवटें लें कौंदें<br>हाय वो आलम जुम्बिश-ए-मिज़गाँ जब फ़ितने पर तोले हैं<br>
इन रातों को हरीम-ए-नाज़ का इक आलम होये है नदीम<br>ख़ल्वत में वो नर्म उँगलियाँ बंद-ए-क़बा जब खोले हैं<br>
ग़म का फ़साना सुनने वालो आख़िर्-ए-शब आराम करो<br>कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं<br>
हम लोग अब तो पराये-से हैं कुछ तो बताओ हाल-ए-"फ़िराक़"<br>
अब तो तुम्हीं को प्यार करे हैं अब तो तुम्हीं से बोले हैं
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,172
edits