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भात का भूगोल / शिरोमणि महतो

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शिरोमणि महतो|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>वे एक हाँक मेंदौड़े आते सरपट गौओं की तरहवे बलि-वेदी पर गर्दन डालकरमुँह से उ‌फ़्फ़ भी नहीं करते । बिलकुल भेड़ों की तरहवे मन्दिर और मस्ज़िद मेंगुरुद्वारे और गिरजाघर मेंकोई फ़र्क नहीं समझतेउनके लिए वे देव-थानआत्मा का स्नानघर होते ! वे उन देव थानों कोबारूद से उड़ाना तो दूरउस ओर पत्थर भी नहीं फेंक सकते,वे उन देव थानों कोअपने हाथों से तोड़ना तो दूरउस ओर ठेप्पा भी नहीं दिखा सकते । वे याद नहीं रखतेवेदों की ऋचाएँ / कुरान की आयतेंवे केवल याद रखते हैंअपने परिवार की कुछेक ज़रूरतें । वे दिन भर खटते-खपते है —तन भर कपड़ा / सर पर छप्पर और पेट भर भात के लिएवे कभी नहीं चाहतेसत्ता की सेज पर सोनाक्योंकि वे नहीं जानतेराजनीति का व्याकरणभाषा के भेदउच्चारणों का {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शिरोमणि महतो
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