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मैं अमर शहीदों का चारण
उनके गुण यश गाया करता हूँ
जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है,
मैं उसे चुकाया करता हूँ।
यह सच है, याद शहीदों की हम लोगों ने दफनाई हैयह सच है, उनकी लाशों पर चलकर आज़ादी आई है,यह सच है, हिन्दुस्तान आज जिन्दा उनकी कुर्वानी से
यह सच अपना मस्तक ऊँचा उनकी बलिदान कहानी से।
वे अगर न होते तो भारत मुर्दों का देश कहा जाता,
जीवन ऍसा ऐसा बोझा होता जो हमसे नहीं सहा जाता,यह सच है दाग गुलामी के उनने लोहू सो से धोए हैं,
हम लोग बीज बोते, उनने धरती में मस्तक बोए हैं।
इस पीढ़ी में, उस पीढ़ी के
काँटों के पथ का वरण किया, रंगीन बहारें लौटा दीं।
उनने धरती की सेवा के वादे न किए लम्बे—चौड़ेलम्बे-चौड़े,
माँ के अर्चन हित फूल नहीं, वे निज मस्तक लेकर दौड़े,
भारत का खून नहीं पतला, वे खून बहा कर दिखा गए,
जग के इतिहासों में अपनी गौरव—गाथाएँ गौरव-गाथाएँ लिखा गए।उन गाथाओं से सर्दखून सर्द खून को
मैं गरमाया करता हूँ।
मैं अमर शहीदों का चरण
उनसे है माँ की कोख धन्य, उनको पाकर है धन्य धरा,
गिरता है उनका रक्त जहाँ, वे ठौर तीर्थ कहलाते हैं,
वे रक्त—बीजरक्त-बीज, अपने जैसों की नई फसल दे जाते हैं।
इसलिए राष्ट्र—कर्त्तव्यराष्ट्र-कर्त्तव्य, शहीदों का समुचित सम्मान करे,मस्तक देने वाले लोगों पर वह युग—युग युग-युग अभिमान करे,होता है ऍसा ऐसा नहीं जहाँ, वह राष्ट्र नहीं टिक पाता है,
आजादी खण्डित हो जाती, सम्मान सभी बिक जाता है।
यह धर्म—कर्म धर्म-कर्म यह मर्म
सभी को मैं समझाया करता हूँ।
मैं अमर शहीदों का चरण
पूजे न शहीद गए तो फिर यह बीज कहाँ से आएगा?
धरती को माँ कह कर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा?
मैं चौराहे—चौराहे चौराहे-चौराहे पर
ये प्रश्न उठाया करता हूँ।
मैं अमर शहीदों का चारण
उनके यश गाया करता हूँ।
जो कर्ज ने खाया है, मैं उसे चुकाया करता हूँ।
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