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दोहे 1अमराई यौवन भरी, कोयल भरे मिठास।हवा बसंती कह रही, आजा छोड़ प्रवास।।2होली के उल्लास का, कुछ मत पूछो हाल।हर मुखड़े पर रंग है, सब मिल करे धमाल।।3होली की यह रीत है, बरसे सब पर प्रीत।देखो हुनर गुलाल का, रूठे मन ले जीत।।4फागुन मस्ती में भरा, मादकता चहुँओरमन सौरभ-सौरभ हुआ, ठहरे न एक ठोर।।5तेरी पीड़ा देखकर, भीगे मेरे नैन।करूँ कौन- सा मैं जतन, तुझको आए चैन।।6आज नहीं वे कल कहें, शायद मन की बात।बीत रहे इस आस में, जीवन के दिन रात।।7आजादी हमको मिली, बदला राज- समाज।बदले ना दिन दीन के, जो कल थे वे आज।।8जीवन सत्ता पर रहा, सुख- दुख का अधिकार।समय चक्र जैसा चले, करना है स्वीकार।।9गहरी होती जा रही, मन की नित्य दरार।प्रेम दया के मायने, आज हुए बेकार।।10स्वार्थ हुआ सबसे बड़ा, बदलें रिश्ते रंग।अहंकार मन में भरा, घर-बाहर है जंग।।11कविता जनकल्याण की, सुरसरि सलिल समान।सरस भाव मन में भरे, सत्पथ का दे ज्ञान।।12शुभ आगत नव वर्ष हो, सब हों हर्ष विभोर।कलुष भाव मन से मिटे, बँधे प्रेम की डोर।।13जग की लीला देखकर, मन हो गया उदास।दाँव वही चलता रहा, लगता था जो खास।।14धरती ज्वर में तप रही, मेघ पिया की आस।जेठ सामने से हटे,बिखरे मिलन सुवास।।15चटक रंग दिखला रही, अड़कर बैठी धूप।तपन जेठ की बढ़ रही, झुलसा जाये रूप।।16धूप सयानी हो गई, बचपन में ही खूब।गर्मी की देखो हनक,सूखी जाये दूब।।17सिर पर छत तन पर वसन, रोटी हो दो जून।चिंता में जीवन गया, क्या मई और जून।।18पढ़- लिख कर शहरी बने,भूले सब संस्कार।मात- पिता का भी नहीं, करते अब सत्कार।।19मन आँगन में रोप दो, प्रेम-दया की बेल।कटुता मिट जाये सभी, बढ़े परस्पर मेल।।20शब्द-बाण ऐसे चले, मन है लहूलुहान।याद नहीं हमको रहा, अपने पद का मान।।21शूल बिछाते ही रहे, पथ में जो गतवर्ष।फूलों का उपहार दे,उनको यह नव वर्ष।।22मंगलकारी वर्ष हो, मिट जाये सब क्लेश।दीपक खुशियों का जले,बिखरे ज्योति अशेष।।23होरी और कबीर की, मौन हुई आवाज।डीजे की धुन पर सभी, झूमें नाचें आज।।24चटक प्रीत के रंग-सा, फिर खिल उठा पलाश।मादक महुआ कह रहा, पिया मिलन की आस।।25खूब दिखाये जिंदगी, नखरे और गुरूर।चल देती मुँह फेरकर, पल में कितनी दूर।26सुगम राह ही चाहता, मन पंछी नादान।लंबी दूरी देख कर, भरता नहीं उड़ान।।
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