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“पिछले कई वर्षों से पराग में शिशुगीत छापे जा रहे हैं। इन शिशुगीतों के चयन में बड़ी सावधानी बरती जाती है क्योंकि शुद्ध शिशुगीत लिखना उतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है। इसलिए अच्छे शिशु गीत बहुत कम लिखे जा रहे हैं। शिशुगीत ऐसे होने चाहिए कि इन्हें 4 से 6 साल तक के बच्चे आसानी से ज़बानी याद कर लें और अन्य भाषा-भाषी बच्चे और बड़े भी इनका आनंद ले सकें। इनसे मुहावरेदार हिन्दी सरलता से जु़बान पर चढ़ जाती है।”
– पराग : अक्टूबर 1996: पृष्ठ 52
शिशुगीतों के सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें कुछ ऊलजलूलपन (नॉनसेंस) हो। उनकी यही विशेषता शिशुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। शिशु गीतों में एक और महत्त्वपूर्ण बात है-भाषा के चयन की, परंतु पराग के भूतपूर्व संपादक आनंदप्रकाश जैन कहते हैं —
चूहे और बिल्ली पर चाहे हिन्दी में हों या अंग्रेजी में सर्वाधिक शिशुगीत लिखे गए हैं। चूहे और बिल्ली के प्रसंग ही ऐसे हैं कि उनमें एक ओर शिशुओं की जिज्ञासा होती है तो दूसरी ओर विपरीत स्वभाव खतरे को भी आमंत्रण देते हैं। पहले अंग्रेज़ी का यह शिशुगीत देखिए :--
पूसी कैट - पूसी कैट ! ह्वेयर हैव यू बीन?आई हैव बीन टु लंदन लन्दन टु विजिट द क्वीन।पूसी कैट - पूसी कैट, ह्वाट डिड यूं यू देयर?आई फ़्राइटेंड फ़्राइटेण्ड ए लिटिल माउस अंडर अण्डर चेयर।चेअर।
तथ्य तो यह है कि बिल्ली सदैव चूहों को सताती रही है। बिल्ली से त्रस्त चूहे सदैव भागते-दौड़ते रहते हैं। चूहे और बिल्ली की भागदौड़ से ही उस कथा का जन्म हुआ है जिसमें बिल्ली के गले में घंटी बाँधने की बात आई है। बिल्ली के गले में घंटी बँधी रहने से जैसे ही आवाज आवाज़ आएगी, चूहे सतर्क हो जाएँगे। मौलिक उद्भावना को दर्शाता हुआ विष्णुकान्त पाण्डेय जी का यह शिशुगीत नन्हें -मुन्नों का भरपूर मनोरंजन करता है —
चूहे ने मौसी बिल्ली को, ऐसी डाँट पिलाई।
मैं अब बूढ़ी हुई, मुझे मत इतना अधिक बताओ।
शिशु गीतों में कभी-कभी बोलचाल की भाषा में बहुत महत्त्वपूर्ण बात भी कहीं जा सकती है। धोबी और गधे का रिश्ता बहुत पुराना है। गधे की स्वामिभक्ति पर किसी प्रकार संदेश सन्देश की गुंजाइश नहीं है। विष्णुकान्त पाण्डेय जी के निम्नलिखित शिशु गीत में अच्छा गाना गाने के बावजूद भी धोबी गधे की अपेक्षा करता है। ऊँट की गधे के प्रति सहानुभूति दर्शनीय है —
माइक कर आकर गदहे ने, चींपू - चींपू गाया।
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