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Kavita Kosh से
<Poem>
मैं पुकारता हूँ कि ग़ौर करो
पुकारता हूँ कि आउ आओ क़ब्र से बाहर
कभी तुमने धोया-पोंछा था मुझे
बुहारकर मेरी ही यादें मेरे बारे में