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<Poem>
एक मोअ'म्मा है समझने का ना समझाने का<br>ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का<br><br>
ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तेरे दीवाने का<br>एक गोशा है यह दुनिया इसी वीराने का<br><br>
मुख़्तसर क़िस्सा-ए-ग़म यह है कि दिल रखता हूँ<br>राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़साने का<br><br>
तुमने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग<br>आओ देखो ना तमाशा मेरे ग़मख़ाने का<br><br>
दिल से पोंछीं तो हैं आँखों में लहू की बूंदें<br>सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का<br><br>
हमने छानी हैं बहुत दैर-ओ-हरम की गलियाँ<br>कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का<br><br>
हर नफ़स उमरे गुज़िश्ता की है मय्य्त फ़ानी<br>
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का
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