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दो0-बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।<br>
सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।4।।<br><br>
मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।।<br>कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए।। सुनाए। १ ।। <br>
जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका।।२ ।।< br>
मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी।अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी।।<br>
दो0-तेहि अवसर आए लखन मगन प्रेम आनंद।<br>
सनमाने प्रिय बचन कहि रघुकुल कैरव चंद।।10।।<br><br>
बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना। पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना।।<br />भरत आगमनु सकल मनावहिं। आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं।।<br />हाट बाट घर गलीं अथाई। कहहिं परसपर लोग लोगाई।।<br />कालि लगन भलि केतिक बारा। पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा।।<br />कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता।।<br />सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन मनावहिं देव कुचाली।।<br />
तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहि चंदिनि राति न भावा।।<br />
सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं बार पाय लै परहीं।।<br />
दो0-बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु।<br />
रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु।।11।।<br /> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br />सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती। भइउँ सरोज बिपिन हिमराती।।<br />देखि देव पुनि कहहिं निहोरी। मातु तोहि नहिं थोरिउ खोरी।।<br />बिसमय हरष रहित रघुराऊ। तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ।।<br />जीव करम बस सुख दुख भागी। जाइअ अवध देव हित लागी।।<br />बार बार गहि चरन सँकोचौ। चली बिचारि बिबुध मति पोची।।<br />ऊँच निवासु नीचि करतूती। देखि न सकहिं पराइ बिभूती।।<br />आगिल काजु बिचारि बहोरी। करहहिं चाह कुसल कबि मोरी।।<br />हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई। जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई।।<br />दो0-नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकेइ केरि।<br /> अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि।।12।।<br /> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br />
दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा।।<br />
पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू।।<br />
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