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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी|संग्रह=}}[[Category:ग़ज़ल]]अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूं ही कभू कभी लब खोले हैं<br>
पहले "फ़िराक़" को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं<br>