भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
विकल्प
व्यर्थ व्यर्थता फिर भी
दिन-ब-दिन बढ़ रही थी
अव्यवस्था व्यर्थता को
संगत प्रमाणित करती है
 
 
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits