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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}
[[Category:गज़ल]]
[[Category:बशीर बद्र]]<poem>अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल के पलकें सँवार लूँमेरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ
अभी इस तरफ़ न निगाह कर अगर आसमाँ की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए-क़याम होतो मैं ग़ज़ल के पलकें सँवार लूँ<br>मेरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार मोतियों की दुकान से तेरी बालियाँ तेरे हार लूँ <br><br>
मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ<br>कई अजनबी तेरी राह के मेरे पास से यूँ गुज़र गयेज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार जिन्हें देख कर ये तड़प हुई तेरा नाम लेके पुकार लूँ <br><br>
अगर आसमाँ की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए-क़याम हो<br>तो मैं मोतियों की दुकान से तेरी बालियाँ तेरे हार लूँ <br><br> कई अजनबी तेरी राह के मेरे पास से यूँ गुज़र गये <br>जिन्हें देख कर ये तड़प हुई तेरा नाम लेके पुकार लूँ <br><br><br> इज़्न-ए-क़याम = रुकने की इज़ाज़त <br><br/poem>