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रसखान

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मानुस हौं तो वही == रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।की रचनाएँ==[[Category:रसखान]]
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
पाहन * [[मानुस हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन। जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥ / रसखान]]* [[या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं॥ / रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं। कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥ ]]* [[सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै। जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥ नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं। ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥ / रसखान]]* [[धुरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी। खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी॥ वा छबि को / रसखान बिलोकत, वारत काम कला निधि कोटी। काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी॥ ]]* [[कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै। माहिनि तानन सों / रसखान, अटा चड़ि गोधन गैहै पै गैहै॥ टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै। माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥ ]]* [[मोरपखा मुरली बनमाल, लख्यौ हिय मै हियरा उमह्यो री। ता दिन तें इन बैरिन कों, कहि कौन न बोलकुबोल सह्यो री॥ अब तौ / रसखान सनेह लग्यौ, कौउ एक कह्यो कोउ लाख कह्यो री। और सो रंग रह्यो न रह्यो, इक रंग रंगीले सो रंग रह्यो री।]]