भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
विकल मानवता का कल्याण, <br>
बैठ खण्डहर मे करता रहा <br>
कभी निशि-भर अतीत का ध्यान.<br><br> श्रवण कर चलदल-सा उर फटा<br>दलित देशों का हाहाकार,<br>देखकर सिरपर मारा हाथ <br>सभ्यता का जलता श्रृंगार.<br><br>
7
edits