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कुछ आग बच रही थी सो आशिक़ का दिल बना
[अनासर= पंचतत्व]
 
सरगर्म-ए-नाला आज कल मैं भी हूँ अन्द्लीब
मत आशियाँ चमन में मेरे मुत्तसिल बना
 
जब तेशा कोहकान ने लिया हाथ तब ये इश्क़
बोला के अपनी छाती पे रखने को सिल बना
 
जिस तीरगी से रोज़ है उशाक़ का सियाह
शायद उसी से चेहरा-ए-ख़ुबाँ पे तिल बना
[उशाक़= आशिक़; सियाह= अंधेरा]
 
लब ज़िन्दगी में कब मिले उस लब से ऐ! कलाल
साग़र हमारी ख़ाक को मत कर के गिल बना
 
अपना हुनर दिखा देंगे हम तुझ को शीशागर
टूटा हुआ किसी का अगर हमसे दिल बना
 
सुन सुन के अर्ज़-ए-हाल मेरा यार ने कहा
"सौदा" न बातें बैठ के या मुत्तसिल बना
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