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वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा <br>
तो फिर ऐ सन्गदिल संग-ए-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यों हो<br><br>
क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम <br>
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