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जोश-ए-जुनूँ में दर्द की तुग़यानियों<sup>3</sup> के साथ<br>
अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी-कभी<br><br>
 
तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन<sup>4</sup> न था<br>
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी<br><br>
 
कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था<br>
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त<sup>5</sup> कभी-कभी<br><br>
 
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत<sup>6</sup> के बावजूद<br>
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी<br><br>
1. वहशत = चिन्ता; 2. बरहम = बैचेन; 3. तुग़यानी = तूफ़ान; 4. मुतमईन = संतुष्ट; 5. शब-ए-फ़ुर्क़त = जुदाई की रात6. तर्क-ए-मुहब्बत = प्यार का तर्क
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