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आ गले मिल लें कि आवाज़-ए-जरस आने को है<br>
ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा<br>
हाय क्या -क्या नेमतें मिली थीं मुझ को बेबहा<br>
यह खामोशी यह खुले मैदान यह ठन्डी हवा<br>
वाए, यह जां बख्श गुस्ताहाए रंगीं फ़िज़ाफ़िज़ां<br>
मर के भी इनको न भूलेगा दिल-ए-दर्द आशना<br>
मस्त कोयल जब दकन की वादियों में गायेगी<br>
यह सुबह की छांव बगूलों बगुलों की बहुत याद आएगी<br>
ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा<br>
कल से कौन इस बाग़ को रंगीं बनाने आएगा<br>
मेरी फ़ुरक़त में लहू रोएगी चश्मे मय फ़रामोश<br>
रस की बूंदें जब उडा देंगी गुलिस्तानों के होश <br>
कुन्जकुंज-ए-रंगीं में पुकारेंगी हवाएं हवाएँ 'जोश जोश'<br>
सुन के मेरा नाम मौसम ग़मज़दा हो जाएगा<br>
एक मह्शर सा गुलिस्तां में बपा हो जाएगा<br>
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