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तबहुँ न बोल चेरि बड़ि पापिनि। छाड़इ स्वास कारि जनु साँपिनि।।<br>
दो0-सभय रानि कह कहसि किन कुसल रामु महिपालु।<br>
लखनु भरतु रिपुदमनु सुनि भा कुबरी उर सालु।।13।।<br><br>
कत सिख देइ हमहि कोउ माई। गालु करब केहि कर बलु पाई।।<br>
रामहि छाड़ि कुसल केहि आजू। जेहि जनेसु देइ जुबराजू।।<b>
पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी। तब धरि जीभ कढ़ावउँ तोरी।।<br>
दो0-काने खोरे कूबरे कुटिल कुचाली जानि।<br>
तिय बिसेषि पुनि चेरि कहि भरतमातु मुसुकानि।।14।।<br><br>
प्रियबादिनि सिख दीन्हिउँ तोही। सपनेहुँ तो पर कोपु न मोही।।<br>
सुदिनु सुमंगल दायकु सोई। तोर कहा फुर जेहि दिन होई।।<br>
प्रान तें अधिक रामु प्रिय मोरें। तिन्ह कें तिलक छोभु कस तोरें।।<br>
दो0-भरत सपथ तोहि सत्य कहु परिहरि कपट दुराउ।<br>
हरष समय बिसमउ करसि कारन मोहि सुनाउ।।15।।<br> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br>
एकहिं बार आस सब पूजी। अब कछु कहब जीभ करि दूजी।।<br>
फोरै जोगु कपारु अभागा। भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा।।<br>
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