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तातें कछुक बात अनुसारी। छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी।।<br>
दो0-गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि।<br>
सुरमाया बस बैरिनिहि सुह्द जानि पतिआनि।।16।।<br> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br>
सादर पुनि पुनि पूँछति ओही। सबरी गान मृगी जनु मोही।।<br>
तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी। रहसी चेरि घात जनु फाबी।।<br>
जरि तुम्हारि चह सवति उखारी। रूँधहु करि उपाउ बर बारी।।<br>
दो0-तुम्हहि न सोचु सोहाग बल निज बस जानहु राउ।<br>
मन मलीन मुह मीठ नृप राउर सरल सुभाउ।।17।।<br> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br> 
चतुर गँभीर राम महतारी। बीचु पाइ निज बात सँवारी।।<br>
पठए भरतु भूप ननिअउरें। राम मातु मत जानव रउरें।।<br>
आगिलि बात समुझि डरु मोही। देउ दैउ फिरि सो फलु ओही।।<br>
दो0-रचि पचि कोटिक कुटिलपन कीन्हेसि कपट प्रबोधु।।<br>
कहिसि कथा सत सवति कै जेहि बिधि बाढ़ बिरोधु।।18।।<br> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br>
भावी बस प्रतीति उर आई। पूँछ रानि पुनि सपथ देवाई।।<br>
का पूछहुँ तुम्ह अबहुँ न जाना। निज हित अनहित पसु पहिचाना।।<br>
जौं सुत सहित करहु सेवकाई। तौ घर रहहु न आन उपाई।।<br>
दो0-कद्रूँ बिनतहि दीन्ह दुखु तुम्हहि कौसिलाँ देब।<br>
भरतु बंदिगृह सेइहहिं लखनु राम के नेब।।19।।<br> &#8211;*&#8211;*&#8211;<bbr> कैकयसुता सुनत कटु बानी। कहि न सकइ कछु सहमि सुखानी।।<br />तन पसेउ कदली जिमि काँपी। कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी।।<br />कहि कहि कोटिक कपट कहानी। धीरजु धरहु प्रबोधिसि रानी।।<br />फिरा करमु प्रिय लागि कुचाली। बकिहि सराहइ मानि मराली।।<br />सुनु मंथरा बात फुरि तोरी। दहिनि आँखि नित फरकइ मोरी।।<br />दिन प्रति देखउँ राति कुसपने। कहउँ न तोहि मोह बस अपने।।<br />काह करौ सखि सूध सुभाऊ। दाहिन बाम न जानउँ काऊ।।<br />दो0-अपने चलत न आजु लगि अनभल काहुक कीन्ह।<br /> केहिं अघ एकहि बार मोहि दैअँ दुसह दुखु दीन्ह।।20।।<br /> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br /> नैहर जनमु भरब बरु जाइ। जिअत न करबि सवति सेवकाई।।<br />अरि बस दैउ जिआवत जाही। मरनु नीक तेहि जीवन चाही।।<br />दीन बचन कह बहुबिधि रानी। सुनि कुबरीं तियमाया ठानी।।<br />अस कस कहहु मानि मन ऊना। सुखु सोहागु तुम्ह कहुँ दिन दूना।।<br />जेहिं राउर अति अनभल ताका। सोइ पाइहि यहु फलु परिपाका।।<br />जब तें कुमत सुना मैं स्वामिनि। भूख न बासर नींद न जामिनि।।<br />पूँछेउ गुनिन्ह रेख तिन्ह खाँची। भरत भुआल होहिं यह साँची।।<br />भामिनि करहु त कहौं उपाऊ। है तुम्हरीं सेवा बस राऊ।।<br />दो0-परउँ कूप तुअ बचन पर सकउँ पूत पति त्यागि।<br /> कहसि मोर दुखु देखि बड़ कस न करब हित लागि।।21।।<br /> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br />
कुबरीं करि कबुली कैकेई। कपट छुरी उर पाहन टेई।।<br />
लखइ न रानि निकट दुखु कैंसे। चरइ हरित तिन बलिपसु जैसें।।<br />
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