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|रचनाकार=कृष्ण कृष्णदास
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बैद को बैद गुनी को गुनी ठग को ठग ढूमक को मन भावै ।
'''कृष्ण कृष्णदास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।'''</Poempoem>