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<br>मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।। २ ।।
<br>कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।
<br>सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।। ३ ।।३।।
<br>मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।
<br>राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।। ४ ।।४।।
<br>दो0-सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
<br> आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।1।।<br>
तिभुवन तीनि काल जग माहीं। भूरि भाग दसरथ सम नाहीं।। २ ।। <br />
मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिज थोर सबु तासू।।<br />
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुट सम कीन्हा।। ३ ।। कीन्हा।।३।।<br />
श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।<br />
नृप जुबराज राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।४ ।। लेहू।।४।। <br />
दो0-यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ।<br />
प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ।।2।।<br />
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कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक। भए राम सब बिधि सब लायक।।<br />
सेवक सचिव सकल पुरबासी। जे हमारे अरि मित्र उदासी।। १ ।। <br />
सबहि रामु प्रिय जेहि बिधि मोही। प्रभु असीस जनु तनु धरि सोही।।<br />
बिप्र सहित परिवार गोसाईं। करहिं छोहु सब रौरिहि नाई।।नाई।।२ ।।<br />
जे गुर चरन रेनु सिर धरहीं। ते जनु सकल बिभव बस करहीं।।<br />
मोहि सम यहु अनुभयउ न दूजें। सबु पायउँ रज पावनि पूजें।।पूजें।।३।। <br />
अब अभिलाषु एकु मन मोरें। पूजहि नाथ अनुग्रह तोरें।।<br />
मुनि प्रसन्न लखि सहज सनेहू। कहेउ नरेस रजायसु देहू।।देहू।।४।। <br />
दो0-राजन राउर नामु जसु सब अभिमत दातार।<br />
फल अनुगामी महिप मनि मन अभिलाषु तुम्हार।।3।।<br />
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सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी। बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी।।<br />
नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू।। १ ।। <br />
मोहि अछत यहु होइ उछाहू। लहहिं लोग सब लोचन लाहू।।<br />
प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं। यह लालसा एक मन माहीं।।माहीं।।२ ।।<br />पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ। जेहिं न होइ पाछें पछिताऊ।।<br />सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाए। मंगल मोद मूल मन भाए।।भाए।।३।।<br />सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं। जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं।। <br />भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी। रामु पुनीत प्रेम अनुगामी।।<br ४।।br />
दो0-बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।<br />
सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।4।।<br />
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मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।।<br />
कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए।। १ ।। <br />जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका।।<टीका।।२ ।। br />मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी। अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी।।<br />बिनती सचिव करहि कर जोरी। जिअहु जगतपति बरिस करोरी।।करोरी।।३।।<br />
जग मंगल भल काजु बिचारा। बेगिअ नाथ न लाइअ बारा।।<br />
नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा। बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा।।सुसाखा।।४।। <br />
दो0-कहेउ भूप मुनिराज कर जोइ जोइ आयसु होइ।<br />
राम राज अभिषेक हित बेगि करहु सोइ सोइ।।5।।<br />
औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मंगल नाना।। १ ।। <br />
चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती।।<br />
मनिगन मंगल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका।।अभिषेका।।२ ।।<br />
बेद बिदित कहि सकल बिधाना। कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना।।<br />
सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा।।फेरा।।३।। <br />
रचहु मंजु मनि चौकें चारू। कहहु बनावन बेगि बजारू।।<br />
पूजहु गनपति गुर कुलदेवा। सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा।।सेवा।।४।।<br />
दो0-ध्वज पताक तोरन कलस सजहु तुरग रथ नाग।<br />
सिर धरि मुनिबर बचन सबु निज निज काजहिं लाग।।6।।<br />
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